Monday, April 13, 2020

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में हमने जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास का  सिद्धांत के बारे में विस्तार से जानेगे और सिद्धांत से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों (Jean Piaget Theory of Cognitive Development in Hindi) को आपके साथ सांझा किया है।  इस सिद्धांत से संबंधित प्रश्न  सभी टीचिंग एग्जाम जैसे CTET,TET,UPTET,RTET में पूछे जाते हैं। 
हमारे इस आर्टिकल में हमने जीन पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धांत को बहुत की सभी चारों अवस्थाओं को विस्तार पूर्वक जाना है।  साथी हमने कुछ प्रश्नों को भी आपके साथ शेयर किया है।  जो पिछले प्रश्न पत्र में आए हुए हैं।  इन प्रश्नों के माध्यम से आपको यह जानने में सहायता मिलेगी की परीक्षा में इस सिद्धांत से किस प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं।  आशा है कि हमारे इस आर्टिकल से आपको आगामी परीक्षाओं में इस सिद्धांत (Jean Piaget Theory of Cognitive Development in Hindi )से संबंधित प्रश्नों को हल करने में काफी मदद मिलेगी।

Jean Piaget Theory of Cognitive Development

प्रवर्तक –जीन पियाजे
जीन पियाजे स्विजरलैंड के एक मनोवैज्ञानिक थे ।
  • सर्वप्रथम संज्ञानात्मक पक्ष का क्रमवध वैज्ञानिक अध्ययन स्विजरलैंड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे द्वारा किया गया।
  • संज्ञान– प्राणी का वह व्यापक और स्थाई ज्ञान है जिसे वह वातावरण \उद्दीपक जगत\ वाह जगत के माध्यम से ग्रहण करता है।
  • संज्ञान के अंतर्गत अवधान (ध्यान केंद्रित करना) स्मरण, चिंतन, कल्पना, अधिगम, वर्गीकरण, समस्या समाधान, निरीक्षण संप्रत्ययकरण (विचारों का निर्माण), प्रत्यक्ष करण आदि मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती हैं यह क्रियाएं परस्पर अंतर संबंधित होती है।
  • जीन प्याजी ने संज्ञानात्मक पक्ष पर बल देते हुए संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का प्रतिपादन किया इसलिए जीन पियाजे को विकासात्मक मनोविज्ञान का जनक माना जाता है।
  • विकासात्मक मनोविज्ञान के अंतर्गत शुरू से अंत तक अर्थात गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक का अध्ययन किया जाता है।
  • विकास का प्रारंभ होता है- गर्भावस्था से।
  • संज्ञान विकास- शैशव अवस्था से प्रारंभ होकर जीवन पर्यंत चलता रहता है।
बालक को में बुद्धि का विकास किस प्रकार से होता है यह जानने के लिए उन्होंने अपने स्वयं के बच्चों को अपनी खोज का विषय बनाया प्याजे के इस अध्ययन के परिणाम स्वरूप उन्होंने जिस सिद्धांत का प्रतिपादन किया उसे पिया जी के मानसिक या संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत के नाम से जाना जाता है।
पियाजे के अनुसार बालक में बुद्धि का विकास उनके जन्म के साथ जुड़ा हुआ है”।
  • प्रत्येक बालक अपने जन्म के समय कुछ जन्मजात प्रवृत्तियों एवं सहज क्रियाओं को रोकने संबंधी योग्यताओं जैसे- चूसना, देखना, वस्तुओं को पकड़ना, वस्तुओं तक पहुंचना आदि को लेकर पैदा होता है।
  • परंतु जैसे-जैसे बालक बड़ा होता है उसकी बॉडी क्रियाओं का दायरा बढ़ जाता है और वह बुद्धिमान बनता जाता है।
बालक को में बुद्धि के इस प्रकार की क्रमिक विकास को पिया जी ने 4 अवस्थाओं में विभाजित किया है जो निम्न है-
1 .संवेदी गामक अवस्था (Sensori motor stage)
2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre operational stage)
3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Conrete operational stage)
4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (Foormal operational stage)

1.  संवेदी गामक अवस्था-

  • यह जन्म से 2 वर्ष की अवस्था होती है।
  • इस अवस्था में बच्चा अपनी ज्ञानेंद्रियों( आंख, नाक ,कान)  के माध्यम से सीखता है।
  • स्कीमा- छोटे-छोटे बच्चों  की क्रियाएं मस्तिष्क से जुड़ी रहती हैं स्कीमा कहलाती हैं यह जीन पियाजे ने कहा
  • इसमें बच्चों में वस्तु स्थायित्व(object performance) का गुण आ जाता है।
  • भूख  लगने की स्थिति को बालक रोकर व्यक्त करता है।
  • जिन वस्तुओं को बालक प्रत्यक्ष देखता है उसके लिए उसी का अस्तित्व होता है।

2.पूर्व संक्रियात्मक अवस्था-

  • यह 2-7 वर्ष की अवस्था होती है
  • इस अवस्था में शिशु दूसरों के संपर्क से, खिलौनों से वाह अनुकरण के माध्यम से सीखता है
  • खिलौनों की आयु इसी अवस्था को कहा जाता है.
  • इस अवस्था में बालक वस्तुओं को क्रम से रखना, हल्की भारी का ज्ञान होना, अक्षर लिखना, रंगो को पहचानना माता पिता की आज्ञा मानना मदद करना आदि सीख जाता है।
  • लेकिन वह तर्क वितर्क करने योग्य नहीं होता है इसलिए इसे आतार्किक चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस अवस्था में बालक पड़ोसी बच्चों के साथ खेल खेलता है।
  • बालक  शब्दों व प्रतीकों का प्रयोग करता है प्रतीकात्मक खेल खेलता है परंतु सही अनुपात का अंतर नहीं कर पाता है।
  • इस अवस्था में बालक अपने परिवेश की वस्तुओं को पहचानने एवं  उसमें विभेद करने लगता है।
  • इस दौरान उसमें भाषा का विकास प्रारंभ हो जाता है।

3.मूर्त संक्रियात्मक अवस्था-

  • यह 7-11 वर्ष की अवस्था होती है।
  • इस अवस्था में बालक में वस्तुओं को पहचानने, उनका विविधीकरण करने तथा वर्गीकरण करने की क्षमता विकसित हो जाती है इसलिए इससे मूर्त चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस अवस्था में बालक सही अनुपात का अंतर, आकार भार, क्रम आदि को समझने लगता है।
  • आरोही अवरोही क्रम समझने लगता है।
  • इस अवस्था में बालक दिन,, तारी समय, नहीं, महिना  आदि बताने योग्य हो जाता है।
  • बालक का चिंतन अब अधिक क्रमबद्ध एवं तर्कसंगत होना प्रारंभ हो जाता है।
  • भाषा एवं संप्रेषण योग्यता का विकास हो जाता है।

4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था

  • यह 11 वर्ष से आगे की अवस्था है।
  • इस अवस्था में किशोर मूर्ति के साथ-साथ अमूर्त चिंतन करने योग्य भी हो जाता है इसलिए इसे तार्किक चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है.
  • इस अवस्था में मानसिक योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है।
  • बालक में अच्छी तरह से सोचने, समस्या का समाधान करने एवं निर्णय लेने की क्षमता का विकास हो जाता है।
  • अमूर्त चिंतन करने लगता है यानी निर्णय ,स्मरण ,मनन आदि करता है ।
  • समस्या का समाधान करने लगता है।

जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास की तृतीय अवस्था कौन सी है
उत्तर– मूर्त संक्रियात्मक अवस्था
प्रश्न जीन पियाजे के अनुसार अधिगम के लिए क्या आवश्यक है
उत्तर- शिक्षार्थियों के द्वारा पर्यावरण की सक्रिय खोजबी
प्रश्न जीन पियाजे के अनुसार, प्रारूप( स्कीमा) निर्माण वर्तमान योजनाओं के अनुरूप बनाने हेतु नवीन जानकारी में संशोधन और नवीन जानकारी के आधार पर पुरानी योजनाओं में संशोधन के परिणाम के रूप में घटित होता है इन दो प्रक्रियाओं को जाना जाता है


उत्तर– समावेशन और समायोजन के रूप में
प्रश्न पियाजे मुख्य रूप से किस के अध्ययन के लिए जाने जाते हैं
उत्तर- संज्ञानात्मक विकास
प्रश्न पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास के किस चरण पर बच्चा “वस्तु स्थायित्व” को प्रदर्शित करता है
उत्तर– संवेदी प्रेरक चरण
प्रश्न पियाजे के अनुसार 2 से 7 वर्ष के बीच का एक बच्चा संज्ञानात्मक विकास की किस अवस्था में है
उत्तर- पूर्व संक्रियात्मक अवस्था
प्रश्न जीन पियाजे के अनुसार कौन सी अवस्था व्यक्ति के संज्ञानात्मक विकास को  प्रभावित नहीं करेगी
उत्तर- सामाजिक अनुभव
प्रश्न रिया कक्षा पिकनिक करने हेतु ऋषभ से सहमत नहीं है वह सोचती है कि बहुमत के अनुकूल बनाने के लिए नियमों का संशोधन किया जा सकता है यह सहपाठी विरोध पियाजे के अनुसार किससे संबंधित है
उत्तर- सहयोग की नैतिकता
प्रश्न पियाजे की कौन सी अवस्था का संबंध अमूर्त एवं तार्किक चिंतन से है?
उत्तर अमूर्त संक्रियात्मक
प्रश्न पियाजे के अनुसार अनुकूलन किसके द्वारा होता है
उत्तर- आत्मसात करण तथा व्यवस्थापन
प्रश्न  जीन पियाजे के सिद्धांत के अनुसार बच्चे किसके द्वारा सीखते हैं
उत्तरअनुकूलन प्रक्रियाएं
प्रश्न जीन पियाजे के अधिगम के संज्ञानात्मक सिद्धांत के अनुसार वह प्रक्रिया जिसके द्वारा संज्ञानात्मक संरचना को संशोधित किया जाता है वह कहलाती है
उत्तर- समावेशन
इस आर्टिकल में हमने जीन पियाजे  के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत तथा इस सिद्धांत से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों (Jean Piaget Theory of Cognitive Development in Hindi) का अध्ययन किया जो सभी टीचिंग एग्जाम में पूछे जाते हैं।  यह सिद्धांत स्विजरलैंड के मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे ने प्रतिपादित किया था, तथा उन्होंने बालक की सभी अवस्थाओं का वर्णन किया है।  जिसे हमने इस आर्टिकल में विस्तारपूर्वक जाना है।  ऐसे ही अन्य एग्जाम से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी वेबसाइट पर विजिट करते  रहे।

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन- संपूर्ण अवधारणा


सतत  तथा  व्यापक  मूल्यांकन:-
सतत तथा व्यापक मूल्यांकन का अर्थ है छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की प्रणाली जिसमें छात्र के विकास के सभी पक्ष शामिल हैं।
यह निर्धारण के विकास की प्रक्रिया है जिसमें दोहरे उद्देश्यों पर बल दिया जाता है। ये उद्देश्य व्यापक आधारित अधिगम और दूसरी ओर व्यवहारगत परिणामों के मूल्यांकन तथा निर्धारण की सततता में हैं।
इस योजना में शब्द ‘‘सतत’’ का अर्थ छात्रों की ‘‘वृद्धि और विकास’’ के अभिज्ञात पक्षों का मूल्यांकन करने पर बल देना है, जो एक घटना के बजाय एक सतत प्रक्रिया है, जो संपूर्ण अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया में निर्मित हैं और शैक्षिक सत्र के पूरे विस्तार में फैली हुई है। इसका अर्थ है निर्धारण की नियमितता, यूनिट परीक्षा की आवृत्ति, अधिगम के अंतरालों का निदान, सुधारात्मक उपायों का उपयोग, पुनः परीक्षा और स्वयं मूल्यांकन।
दूसरे शब्द ‘‘व्यापक’’ का अर्थ है कि इस योजना में छात्रों की वृद्धि और विकास के शैक्षिक तथा सह-शैक्षिक दोनों ही पक्षों को शामिल करने का प्रयास किया जाता है। चूंकि क्षमताएं, मनोवृत्तियां और अभिरूचियां अपने आप को लिखित शब्दों के अलावा अन्य रूपों में प्रकट करती हैं अतः यह शब्द विभिन्न साधनों और तकनीकों के अनुप्रयोग के लिए उपयोग किया जाता
सतत और व्यापक मूल्यांकन में छात्र के विकास के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है एवं ये  छात्र की स्कूल आधारित मूल्यांकन  प्रणाली को दर्शाता है जो  छात्र के विकास की प्रक्रिया है | इसके  उद्देश्यों  मूल्यांकन में निरंतरता और व्यापक आधार पर शिक्षा और अन्य  व्यवहार परिणामों का आकलन कर रहे हैं।
यह नियमितता, इकाई परीक्षण, सीखने के अंतराल , सुधारात्मक उपायों के उपयोग शिक्षकों और छात्रों के लिए उनके आत्म मूल्यांकन  की प्रतिक्रिया  है।
शब्द 'निरंतर' छात्रों की पहचान बिभिन पहलुओं का मूल्यांकन करता है
दूसरा शब्द 'व्यापक' शैक्षिक योजना और छात्रों के विकास , विकास के सह-शैक्षिक पहलुओं दोनों को कवर करने करने का  प्रयास करता है
पृष्ठभूमि   एवं  अवधारणा
शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के अनुसार 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों का अधिकार है गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना। कानून के सेशन 29 में स्पष्ट कहा गया है कि कक्षा 1 से 8 तक की कक्षाओं के लिए पाठ्यक्रम बनाते समय यह ध्यान रखा जाए कि पाठ्यक्रम बच्चों के सर्वांगीण विकास करने वाला हो। स्कूल और कक्षाओं में पढ़ने-पढ़ाने के तरीके बच्चों की अंतर्निहित क्षमताओं को उभारे और उनमें अपना ज्ञान निर्माण स्वयं करने की क्षमता विकसित हो। बच्चों ने जो सीखा है उसका मूल्यांकन उनके पढ़ने के दौरान लगातार होता रहे और उन्हें परीक्षा का भय नहीं लगे। परीक्षाएं बच्चों का मूल्यांकन भी बताने वाली हो साथ ही उससे शिक्षक को अपनी शिक्षण योजना में बदलाव करने का आधार एवं मौका भी मिले।
इस प्रकार सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की प्रक्रिया वास्तव में व्यापक गुणवतासुधार प्रक्रिया ही है। इसे सीखने-सिखाने की विधा एवं विद्यार्थी के स्कूल-आधारित मूल्यांकन व्यवस्था के रूप में ही समझा जाये जिसमें विद्यार्थी के सीखने के सभी पक्षों पर ध्यान दिया जाता है।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में सततता जहां एक ओर कक्षा प्रक्रिया के रूप मे होगी वहीं सावधिक मूल्यांकन के रूप में भी होगी। व्यापकता उन मुद्दों को प्रमुख रूप से रेखांकित करेगी जो बच्चों के विभिन्न कौशल, भावात्मक और क्रियात्मक पक्ष को उजागर करेगी।
राज्य में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन लागू करने के चरण –
1- प्रथम चरण 2010-11 :
 राज्य में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन को अधिनियम के लागू होने के साथ ही पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में मई 2010 से अलवर एवं जयपुर के 60 विद्यालयों में सर्वप्रथम कक्षा 1-5 तक एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकों के साथ शुरू किया गया।
2- दितीय चरण 2012-13 :
 अकादमिक सत्र 2012-13 से सतत एवं व्यापक मूल्यांकन राज्य में 178 ब्लॉक के 3059 राजकीय प्राथमिक विद्यालयों एवं पायलेट प्रोजेक्ट के विद्यालयों में कक्ष 6 से 8 तक शुरू किया गया।
 
3- तृतीय चरण 2013-14 :
इस शैक्षिक सत्र में सम्पूर्ण ब्लॉक को कवर करते हुए लगभग 9 ब्लॉक के 2500 विद्यालयों की प्राथमिक कक्षाओं में सीसीई के विस्तार पर कार्य किया गया। इस प्रकार इस समय लगभग 5811 विद्यालयों में सीसीई का संचालन किया जा रहा है।
आकलन/मूल्यांकन उपकरण
1.  सतत अवलोकन अभिलेखन
2.   चैकलिस्ट
3.  पोर्टफोलियो
4.   कक्षा कार्य
5.   गृह कार्य
6.   अन्य शिक्षिकाओं अभिभावकों एवं साथियों द्वारा आकलन
7.    प्रोजेक्ट कार्य आदि
सतत् और व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं :
1.   सतत् और व्यापक मूल्यांकन विद्यार्थियों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन पद्धति को इंगित करता है जिसमे विधार्थियों के समस्त पक्ष सम्मलित होते हैं |
2.   सतत् और व्यापक मूल्यांकन निरंतर और आवधिक मूल्यांकन का ध्यान
रखता है |
3.  निरंतर का अर्थ है अध्यापन से पूर्व आकलन और अध्यापन की अवधि में मूल्यांकन |
4.  सतत् और व्यापक मूल्यांकन का व्यापक भाग बालक के व्यक्तित्व के चतुर्मुखी विकास का ध्यान रखना हैं  | इसमें शैक्षिक और सह्पाठ्यचारी पक्षों को विकास सम्मलित होता हैं |
5.  शैक्षिक पक्ष में पाठ्य क्षेत्र या विषय विशेष के क्षेत्र सम्मलित होते हैं, जबकि सहपाठ्यचारी पक्ष में सह-पाठ्य  और व्यक्तित्व विशेषताएं, रुचियाँ, मनोवृतियाँऔर मूल्य सम्मलित होते हैं |
सतत् और व्यापक मूल्यांकन के गुण :
1.          अधिक मान्य (More valid) : यह बाहरी परीक्षायों के मुकाबले अधिक वैध है क्योंकि इसमें हर महीने पाठ्यक्रम विश्लेषण के सभी विषयों को शामिल किया गया हैं |
2.          नियमित और समयबद्ध (Regular punctual) : छात्र अधिक नियमित और समयबद्ध हो जायेंगे | वे सभी सम्बंधित मामलों की पूरी संतुष्टि के लिए अपने ग्रेह कार्य और कक्षा कार्य करने की कोशिश करेंगे |
3.          अनुशासन (discipline) : अनुशासन की समस्या कम हो जाएगी|
4.          अधिक विश्वसनीय (More reliable): यह बाहरी परीक्षाओं की तुलना में अधिक विश्वसनीय है क्योंकि इसमें पाठ्यक्रम के सभी विषयों को शामिल किया गया हैं |
5.          प्रेरक मूल्य (Motivational value) : यह विद्यार्थियों को नियमित रूप से और अच्छी तरह से काम करने लिए प्रेरणा देता है | वे वर्ष के माध्यम से काम करते है और समय बर्बाद नहीं करते है |
6.          नैदानिक मूल्य (diagnostic value) : यह सिखने में विद्य्र्थिओन की कठिनाइयों का निदान करने में सक्षम बनाता है | यह एक व्यक्ति की आवश्यकतायों , हितों, क्षमताओं और योग्यताओं को खोजने के अवसर प्रदान करता हैं और उसे विकास के लिए रास्ता दिखता हैं |
7.          कोई अनुचित तनाव नहीं (no undue strain): छात्रों को अनुचित तनाव से आराम है , छात्रों को नैतिक मानकों को लहर की अनुमति कभी नहीं होती हैं |
8.          छात्रवृति का आधार (basis of scholarship) : यह छात्रवृति देने और शुल्क रियायतों को देने के लिए आधार के रूप में कार्य करता हैं |
9.          सकारात्मक परिणाम (positive results) : इसका उद्देश्य यह पता करना है कि बच्चा क्या जनता है, क्या वेह कर सकता है और क्या पता है की वह क्या नहीं जानता , और उसको क्या बुधि मिली हैं आदि |
सतत् और व्यापक मूल्यांकन के दोष :
1.  समय लगता है (time consuming) : सतत् और व्यापक मूल्यांकन समय लेने वाली हैं |
2.  शिक्षकों को बहरी काम का बोझ (heavy work load of teachers) : अल्पावधि मूल्यांकन में शिक्षकों के काम का बोझ बढ़ जाता है इसके आलावा, यह शिक्षकों के भाग में प्रशिक्षण, दक्षता और कुशलता की मांग करता हैं |
3.  बाहरी परीक्षा के बिना अपूर्ण (incomplete without external examination) : बाह्य परीक्षा की अनुपस्थिति में, मूल्यांकन के प्रत्येक योजना में वर्ष के अंत में एक सार्वजानिक परीक्षा बहुत आवश्यक हैं |
4.  संख्या और तीव्रता में वृद्धि (increase in number and intensity) : रिश्वतखोरी जैसी बुरी चीजें संख्या और तीव्रता में बढ़ सकती हैं |
5.  काम के शिकारी (shirkers of works) : अध्यापन के पेशे में काम करने वालों को जीवन की कुछ मज़बूरी के कारण काम नहीं कर सकते हैं और उनके हाथों से मानदंड निचे जा सकते हैं |
विद्यालयों में सतत् और व्यापक मूल्यांकन का प्रभाव :
पिछले साल, सीबीएसई ने निरंतर और व्यापक मूल्यांकन के साथ शेक्षिक सुधारों का एक नया सेट पेश किया, जिसमे शिक्षा प्रणाली का एक आव्र्हाल था |पुए देश में दस्तावेज प्रसारित किये जा रे है , और cbse द्वारा प्रधानाचार्यों और शिक्षकों के लिए गहन प्रशिक्षण एक उल्लेखनीय प्रयास रहा हैं |
सीसीई को लागू करने के पीछे ढाचें और विचारधारा की समझ की कमी हैं चलिए सीसीई के कुछ पहलुओं की जांच करते है :
1.   मूल्यांकनो को शिखा के सभी तीन प्रमुख लक्ष्यों क प्राप्त करने चाहिए – मानसिक, संज्ञानात्मक और भावात्मक |
2.  यह क्लास परीक्षणों के जरिये साप्ताहिक कक्षाएं छोटे बिट्स और परिक्षण छात्रों में नहीं दर्शाती हैं क्योंकि यह फिर से पेपर और पेंसिल मूल्यांकन हैं |
3.  यह केवल औपचारिक मूल्यांकन पर जोर नहीं देता हैं, बल्कि अनोपचारिक रूप में सेटिंग्स जैसे कि ब्रेक-time, गलियारे में, पला फील्ड आदि में आकलन या अवलोकन किया जाता हैं |
शिक्षकों द्वारा सामना की गयी परेशानियां :
हमारे पीएसई 2 के दोरान जीबीएसएस हौज़ रानी हमे विभिन्न शिक्षकों के साथ बातचीत करने और उनके द्वारा सीसीई के दृष्टिकोणों को पूछना था | हमने पाँच शिक्षकों से बातचीत की और सीसीई के बारे में में उनके विचार जानने के लिए एक प्रश्नावली के माध्यम से उनसे कुछ सवाल पूछे| हमे पाया सवाल बहुत चोकने वाले थे | वे सभी सीसीई और इसके से बहुत तनावग्रस्त और तंग थे | उन्होंने कहा की सरक
ार ने विद्यार्थियों का आकलन करने का एक बहुत ही अच्छा तरीका चुना हैं लेकिन इसका कार्यान्वन उचित नहीं हैं | सीसीई औपचारिक्तायों और कागज के काम के कारण यह महसूस करता है की हम क्लर्क है, शिक्षक नहीं है हम इन कार्यों को करने के लिए बाध्य है , जो छात्र कक्षा के समय का खर्च करते है हम उन्हें हम ठीक से और नियमित रूप से नहीं पढ़ा पा रहे हैं | हम पुरे दिन विद्यालय के कामो में ही लगे रहते है , कभी शिक्षक डायरी तयार करने में कभी रजिस्टर्स का काम पूरा करने में , जितना समय हमे बच्चों को पढ़ाने को देना चाहिए उतना समय हम बच्चों को नहीं दे पाते है , जिसके कारण बच्चों की पढाई अच्छे  से नहीं हो पाती हैं |
सुझाव :
सीसीई विद्यार्थियों के आकलन का एक अच्छा तरीका है लेकिन इसका क्रियान्वन आचे से नहीं हो पा रहा हैं और इसके लिए सरकार को सख्त निरिक्षण करना चाहिए | लेलिन सीसीई का मुख्य उद्देश्य यह है कि जो छात्र शेक्षिक व्यवस्था में प्रभावी रूप से भाग लेने में असमर्थ है, उनके ऊपर दवाव कम करना | हाँलाकि , प्रणाली को वास्तविक शिक्षा क अलावा परियोजनायों और गतिविधियों पर अधिक ध्यान देने के लिए भी आलोचना की गयी हैं | आलोचकों का यह भी कहना है कि छात्रों का वोर्क्लोअद वास्तव में निचे नहीं गया हैं बल्कि परीक्षायों में कमी आई हैं | छात्रों का गतिविधियों में भाग लेना आवश्यक खाई बेशक पाठ्यक्रम को कवर नहीं किया गया हो | अत: सीसीई के कार्यान्वन के साथ – साथ विद्यालयों को उनके शिक्षण समय और सीसीई काम के समय आवंटित करने के लिए एक उचित कार्यक्रम प्रदान किया जाना चाहिए | कुछ स्तर पर शिक्षकों को आराम देने के लिए सीसीई से बेकार और समय बरबाद करने की ओपचारिकता को हटा दिया जाना चाहिए |
सीसीई फलवादी बनाने के लिए सख्त निरिक्षण किया जाना चाहिए | कुछ माता –पिता और छात्रों ने भी अपनी मानसिकता को बदलने में मदद कर सकता है | जागरूकता उनकी मानसिकता को बदलने में मदद कर सकता है |शिक्षकों को इनके लाभों को ध्यान में रखते हुए सीसीई को स्वेच्छा से लेना चाहिए | उन्हें इसे बोझ और बेकार वोर्क्लोअद के रूप में नहीं लेना चाहिए |
Gopal prasad kirar

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में हमने  जीन पियाजे  के संज्ञानात्मक विकास  का  सिद्धांत के बारे ...